पालकालीन ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए एक गुमनाम संग्रहालय

ताड़पत्र पर लिखित महाभारत, मुगलकालीन पेंटिंग और पालकालीन सूर्य की अखंडित मूर्तियां इस संग्रहालय में मौजूद है।

पटना जिला मुख्यालय से 60 किमी दक्षिण तथा एनएच-98 से 4 किमी पूरब की दिशा में स्थित भरतपुरा गांव में है ऐतिहासिक धरोहरों और खजानों से सज्जित गोपाल नारायण सिंह संग्रहालय।

 गोपाल नारायण सिंह ने इस पुस्तकालय की स्थापना सन् 1912 ई. में पटना के तत्कालीन कमिश्नर डी आर प्रेन्टिस के हाथों करवाया|

इस संग्रहालय में करीब 8000 पांडुलिपियों, 400 प्राचीन मूर्तियों, 1000 ऐतिहासिक चित्रों,4000 से भी ज्यादा प्राचीन सिक्कों समेत कई एंटीक वस्तुओं का संग्रह है|

यहां फिरदौसी के सचित्र शाहेनामा की पूरे विश्व में उपलब्ध इकलौती प्रति मौजूद है|यहां निजामी का सिकंदरनामा, अमीर हम्जा का दास्तान-ए-अमीर हम्जा,समेत 11वीं सदी की सिंहासन बत्तीसी,बैताल पचीसी, अबुल फजल की कृतियां,गर्ग संहिता जैसे ग्रंथ और पांडुलिपियां हैं|

पटना कलम के पूर्वज और अकबर के नवरत्नों में शुमार बसावन की पेंटिंग 'साधु' इस संग्रहालय की खास धरोहर है|

यहां अकबर के दीन-ए-इलाही सिक्के, बुद्ध के समय के सिक्के,पंचमार्क सिक्के, यक्षिणी की मूर्ति समेत कई बहुमूल्य कलाकृति मौजूद है|

बिहार सरकार संग्रहालय को बड़ी पहचान देने में विफल रही है|

संग्रहालय के वर्तमान सचिव ध्रुपद नारायण सिंह ने बताया कि यहां जितने महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक खजाने उपलब्ध हैं वह किसी अन्य लाइब्रेरी कम म्यूजियम में नहीं है|इसकी महत्ता को देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  यहां कई बार आ चुके हैं और इसे बड़ा स्वरूप देने की बात कह चुके हैं|

1973 में तस्करी का शिकार हुआ संग्रहालय

8 जनवरी 1973 को सर्द रात में अंतरराष्ट्रीय तस्करों ने सुरक्षा प्रहरी पर हमला करके बहुमूल्य चित्रित पांडुलिपियां गायब कर दिया|असम के सांसद एमएस गुहा ने सांसद में इस मामले को लेकर आवाज उठाई| तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1974 में पांडुलिपियों की चोरी की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा|सीबीआई ने तीन पांडुलिपियों को बरामद किया,लेकिन अकबर के समकालीन सलामत अली द्वारा लिखित मुता-उल-हिंद का तब पता नहीं चल सका था|बाद के दिनों में इंटरपोल ने उसे भी कैलिफोर्निया से बरामद कर लिया|

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