महान गीतकार शंकर शैलेंद्र की आज 100 वीं जयंती है. शैलेंद्र के शब्दों में ही कहे तो वो जिंदगी की जीत में यकीन रखने वाले इंसान थे.
'तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर '
उनका फलसफा था कि अगर कहीं स्वर्ग है तो उसे जमीं पर होना चाहिए
'अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीं पर '
शैलेंद्र अपने गीतों में स्वर्ग का स्वप्न केवल न्याय और समानता के राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित नहीं हैं बल्कि शैलेंद्र एक सम्मानजनक जीवन के लिए इसको अनिवार्य मानते थे.
सार्वजनिक जीवन में झूठ फरेब और फेक न्यूज की व्याप्ति हमें शैलेंद्र के गीतों की प्रासंगिकता को याद दिलाते हैं. इस दौर में कोई इस तराने से कैसे असहमत हो सकता है
'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है.'
कोई कैसे शैलेंद्र के इस मर्मस्पर्शी प्रश्न से विचलित नहीं होगा
'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई '
इस सृष्टि के रचयिता के प्रति यह एक प्यारा उलाहना है जो लोगों के दुख दर्द के प्रति उदासीन बना हुआ है.
1923 में पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे शैलेंद्र मुंबई में भारतीय रेलवे में नौकरी कर रहे थे जब राज कपूर ने उन्हें एक मुशायरे में सुना. राज कपूर मुशायरे में शैलेंद्र द्वारा पढ़ी कविता "जलता है पंजाब" को अपने फिल्म में इस्तेमाल करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने शैलेंद्र को 500 रुपये का ऑफर
दिया लेकिन उन्होंने राज कपूर को लगभग झिड़कते हुए कहा कि उनकी कविता बिकाऊ नहीं है. इसके बावजूद राज कपूर इस युवा कवि से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने शैलेंद्र को बताया कि उनका ऑफर हमेशा खुला है जब
उनका मन बदले तब आ सकते है.
आखिरकार परिस्थितिवश शैलेंद्र काम के लिए राज कपूर के पास गए और उनकी फिल्मों के कुछ सबसे मशहूर गानों को कलमबद्ध किया जिनमें 'मेरा जूता है जापानी' और 'आवारा हूं' जैसे गाने शामिल हैं.
1950 से 1960 के उतरार्द्ध के दशक तक के फिल्म शैलेंद्र के नगमों से गुलजार रहते थे. देव आनंद की 'गाइड' और 'काला बाजार', विमल रॉय की 'मधुमति', 'बंदिनी', और 'दो बीघा जमीन' इनमें उल्लेखनीय हैं.
यह जानना रोचक है कि 'तू जिंदा है' गाने को कभी किसी फिल्म में नहीं फिल्माया गया लेकिन बीते सालों के दौरान यह गीत विभिन्न वैचारिक खेमों के कार्यकर्ता समूहों के लिए एक गान बन गया.
चूंकि शैलेंद्र का जुड़ाव प्रगतिशील लेखक संघ और इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन दोनों से था, इसलिए उन्हें एक वामपंथी कवि के रूप में देखा जाता है.
फिर भी उनका अधिकांश लेखन राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा से परे था. यहां तक कि 'तू जिंदा है'' जोकि न्याय और गरिमा की पैरोकारी करता है, मूलत: दृढ़ता की एक पुकार है जो हमें गमों से ऊपर रखता है. यही वो चीज है जो हमें ताकत देती है कि हम निरंतर धरती पर स्वर्ग को उतार सकें चाहे परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल हों. शैलेंद्र लिखते हैं दुख के ये दिन बीत जाएंगे, किसी दिन हमारे जीवन के बाग में बसंत आएगा.
यह गीत जोकि शायद शैलेंद्र की विरासत का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व करता है उस सच पर आधारित है जिसको भारत भर के भक्ति कवियों ने बार बार दोहराया है. वास्तव में जीने का अर्थ है दूसरों के दुख और सुख दोनों को महसूस करना. 'किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार , किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार' यह एक ऐसा आनंदायक अनुभुति है जिसकी जरूरत युगों युगों तक रहेगी. शैलेंद्र ने इसपे जोर दिया कि यही वो चीज है जो जीवन को सम्पूर्णता देती है.
समय समय पर विभिन्न वैचारिक समूह आदर्श समाज के अपनी दृष्टि लेकर सत्ता में आते हैं जोकि आदर्श तभी होता है जब कुछ खास तरह के लोगों को उससे निष्कासित कर दिया जाए. इतिहास गवाह है कि ऐसे प्रयास आमतौर पर धरती पर नर्क पैदा करते हैं.
शैलेंद्र युगों युगों तक याद रखे जाएंगे क्योंकि उन्होंने आजमाए और परखे हुए सत्य को उद्घाटित किया कि धरती पर स्वर्ग तभी संभव है जब हमें दूसरों के सुख और दर्द की समानुभूति होती है.
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